Monday, December 27, 2010

आत्मीयता से भरी बातों को........

आत्मीयता से भरी बातों को
"कुरियर" के सहारे,
मुझ तक पहुँचा दिया,
चलो अच्छा किया,
एक शिष्टाचार था
बाकायदा निभा दिया .
विश्वास और अविश्वास के
पलड़े में
झूलता हुआ
अंतर्द्वंद,
मौसम के ढलान पर
अप्रत्याशित परिस्थितियों का
सामना करते हुए,
अपेक्षाओं  के मापदंड से
फिसलता गया,
विधिवत  प्रक्रियाओं को
कार्यान्वित करना,
भूलता गया
और काट-छाँटकर
निकाले हुए समय ने ,
इस लाचार मनःस्थिति को
अपराध मानकर,
अपनी बहुमूल्यता का एलान
इस अंदाज़ में
किया
कि मुजरिम बनाकर,
हमें
कठघरे में
खड़ा कर दिया,
चलो अच्छा किया,
एक शिष्टाचार था
अपने ढंग से निभा दिया.

Tuesday, December 21, 2010

मरुभूमि कितना.........

'मरुभूमि
कितना सूना लगता है.......'
अनायास ही
निकल गया था
मुंह से ,
जब 'आबू-धाबी' के 
ऊपर से
'सूडान' जाने के लिए,
जहाज़ उड़ा था
और
नीचे 'सहारा डेज़र्ट'
उदास खड़ा था.
न कहीं पानी,
न कहीं हरियाली,
एकदम सन्नाटा
एकदम ख़ाली.
बात हो गयी थी
आई-गई,
बीस-बाईस साल में
मैं भी
भूल गई
पर
आज सुबह,
बाल झाड़ते हुए,
अवाक्
रह गई थी.........
'कितनी समानता है
मेरी आँखों में',
ख़ामोशी
रूककर
कह गई थी .

Tuesday, December 14, 2010

मधुमय तुम्हारा हास.......

मधुमय तुम्हारा हास
मेरे मन का बसंत है,
सुमधुर तुम्हारे श्वासों का
आरोह – अवरोह,
मेरी कल्पना में,
मेरी प्रेरणा में,
कुसुम कली से सुरभित
तरूलता सी,
लिपटी हुई है
और इन आँखों की नमी,
सिर्फ तुम्हारी है ।

Saturday, December 4, 2010

फैशन शो में.........

औंधे मुंह गिर गयी शर्म,
पल्लू बाहर
रोता था,
ध्वस्त हया की
सिसकी पर 
जब ,
'कैट-वॉक' होता था.
कुछ ऐसे,कुछ वैसे
कपड़ों की
ताकत से , शायद........
मंच हिला था,
लज्जा की दीवारों पर,
कितना कीचड़
फैला था.
गीत की लय पर
वहां,
आँखों की पुतली
बोलती थी ,
धज्जियां
बेवाक फैशन की
चमक-कर,
डोलती थी,
कतरनें
फैशन-परस्ती से
बदन पर,
सज रहीं थीं,
थान-दर-थानों के
कपड़े
सरसराकर,
चल रहे थे .
पीढ़ियों की सीढ़ियों पर
रूढ़ियाँ थीं
सर झुकाए,
रेशमी पैबंद पर
ख़ामोश थीं,
धमनी-शिराएँ.
बत्तियों का था धुआं
और
शोख़ियों का
शोर था,
रोशनी के दायरों में,
चल रहा 
एक होड़ था .
पारदर्शी था कोई,
बेखौफ़ था
उनका जुनून,
झिलमिलाती सलवटों पर,
रात ने
खोया सुकून.
थी कोई आंधी चली
या कि कोई,
तूफाँ रूका था,
देखता कोई ,कोई
आँखें
झुकाने में लगा था .
नए फैशन की
नुमायश पर
नया ,
नग़मा बजा था,
आँचल का
अभिमान कुचलकर,
'हॉल'
तालियों से गूँजा था.