Saturday, February 26, 2011

प्रिय,जब मैं तुमसे दूर रहूँ........

प्रिय,जब मैं तुमसे दूर रहूँ........
तुम
मन-ही-मन में
मन से
मन की
कह लेना...
मैं सुन लूँगा...... 
प्रिय,भोर समय
छज्जों पर,
कोयल का रस-स्वर
गूंजे,
अपने भावों  को
भरकर,
अपने सुर में 
तुम गाना ,
मैं गुन लूँगा......
प्रिय,शाम ढले
आंगन में,
रजनीगंधा की कलियाँ
निज हाथों से
बिखरा देना,
मैं चुन लूँगा....
प्रिय, तम में
पलकों पर तुम,
सुंदर सपनों को 
लाना ,
लेकर अपनी आँखों में 
मैं बुन लूँगा......
प्रिय, जब मैं तुमसे दूर रहूँ.......
तुम मन-ही-मन में 
मन से 
मन की 
कह लेना..... 
मैं सुन लूँगा........ 



Tuesday, February 22, 2011

.......... और एक दिन

.......... और एक दिन
झिंगुर ने,
झिंगुरानी से यह कहा-
प्रिय.....
प्यार,कर्म,विश्वास
मिलाकर,
जो दिवार हम
खड़ी किये,
चलो-चलो
फिर से
रंगते हैं,
आखिर हम-तुम
क्यों
लड़ते हैं?
क्यों न आज हम 
उन लम्हों की
कसमें खाएं,
सूर्य,चन्द्र और
अग्नि-वरुण-जल
साथ चले थे.....
क्यों न आज हम
उन लम्हों का
जश्न मनाएं,
जहाँ हमारे
स्वप्न
पले थे.........
क्यों न शून्य में 
अपने 
दिल की,
धड़कन खूब गुंजाएं,
कोई नाद कहे ,
कोई ध्रुपद कहे,
कोई ओम कहे,
हम सबको साथ 
मिलाएं. 






Thursday, February 17, 2011

कल रात भर.........

दूब पर
शबनम की चादर  
थी बिछी,
छींटे पड़े
पत्तों पे थे,
थी पंखुरी के
भाल पर,
मोती जड़ी
कि ओस इतना
था गिरा,
कल रात भर.........

Tuesday, February 15, 2011

"तुम सुबह की चाय सी.......

आज मन में आया कि कुछ अलग लिखते हैं और नतीज़ा ........
"तुम सुबह की चाय सी
गरमा-गरम,
बिस्कुट हो
'गुड-डे',
तुम 'डबल' अंडे का
'ऑमलेट',
तुम 'ट्रिपल' 'आइस-क्रीम'
'सन्डे'.
तुम समोसा हो
मटर का
और जलेबी रस भरी,
तुम ही हो
कुल्फी-फ़लूदा,
तुम ही हो
गुझिया परी.
तुम ह्रदय के कुञ्ज में
काजू की कतली,
मूंगफली हो,
तुम पराठों पर फिसलती
गुड़ में
मक्खन की डली हो.
दाल का
तड़का हो तुम,
सिगड़ी सिकी रोटी
कराड़ी,
तुम कचौड़ी हो
उड़द  की
और
चटनी खूब सारी.
तुम ही हो भरवाँ करेला,
तुम हो
शलगम का अचार,
तुम हो
सीताफल की सब्ज़ी,
तुम ही हो
शरबत-अनार.
तुम मेरी कोफ्ता-करी
पालक-पनीर,
तुम हो बिरयानी
तुम ही
चावल की खीर,
अब सुनो.....
मेरी बालूशाही....
ऐ मेरी छोले-भटूरे......
तुम हो
देशी घी का
हलवा,
हो गए
हर ख़्वाब पूरे."



Saturday, February 12, 2011

एक दिन........

एक दिन
अकेली मैं उदास,
बुलाने बैठी आसमान में
उड़ते हुए
चिड़ियों को ...
चिड़ियों ने कहा-
'रात होनेवाली है,
घर जाने की जल्दी है.'
सूरज को गोद में लिए,
पश्चिम की लाली से
बोली मैं.....
कुछ देर के लिए
मेरे पास,
आओ तो...
'विदा करनी है
सूरज को,
कैसे आऊंगी इस वक्त
कहो तो?'
थोड़ी ही देर बाद
आहट हुई,
रात के आने की,
दरवाज़े पर ही खड़ी-खड़ी
रोकने लगी ,
रात को
कि ठहर कर जाना....
अभी-अभी आई हूँ ,
रात ने कहा-
'मुश्किल है इन दिनों,
बरसता है
शबनम,
सारी-सारी रात-
भींगने का मौसम है.'
चाँद से बोली....
आओ सितारों के साथ,
कुछ बात करें.
चाँद ने कहा-
'घूमना है तारों के साथ
आज की रात,
कैसे बात करें?'
फूलों,भौरों,तितलियों ने
रचाया था
उत्सव,
स्वच्छन्द विचरते हुए
मेघ-मालाओं ने कहा-
'बरसना है अभी और.'
हवाओं को जाना था,
खुशबू लेकर
दूर-दराज़,
नदियों-झीलों को
करनी थी,
अठखेलियाँ
और
पहाड़ों पर जमी हुई
बर्फ़ ने कहा-
'बहुत दूर है
तुम्हारा घर.'
झरनों से गिरता हुआ
कल-कल,
दूब पर फैली
हरियाली,
ताड़, खजूर युक्लिप्टस
और चिनारों ने
सुना दी,
अपनी-अपनी....
और
हारकर कहा मैनें-
अपने मन से.....
'तुम मेरे पास रहना.'
'मुझे नहीं रहना',
झुंझलाकर बोला,मेरा
अपना ही मन.
'मैं जा रहा हूँ,
बच्चों के पास,
आ जाऊंगा ,मिल -मिलाकार'.
तुम यहीं रहो......
लेकिन
कितने दिन हो गए,
मन तो लौटा ही नहीं,
तो मेरे बच्चों.....तुमलोग
ऐसा करना.....
वापस भेज देना
समझा-बुझाकर, मेरा मन
कि
मैं यहाँ,
अकेली पड़ गई हूँ.















 


  

Monday, February 7, 2011

तन्हाई में यूँ ही बैठे.....



आप सब जाने-अनजाने पाठकों को मन से धन्यवाद देती हूँ, जो  मेरी कवितायेँ पढ़कर, समय -समय पर अपनी बेबाक टिप्पणी से उसे सजाते-संवारते  रहते हैं. आपके  सहयोग का सुख अमूल्य है और लगातार प्रेरित करती रहती है कुछ लिखने के लिए......

'तन्हाई में यूँ ही बैठे,
जब
याद हमारी
आ जाये.....
मीठी यादों को
जोड़-जोड़,
अलकों में
भरकर स्नेह प्रिय,
मेरा मन रखने को
इतना
तुम कर देना......
तुम हँस देना.
सागर में जब
लहरें गायें,
बागों में
कलियां मुस्कायें,
बादल के पीछे
इन्द्रधनुष,
अपनी आभा जब
बिखरायें,
ऐसे में
खो स्मृतियों में.....
सौरभ का कर एहसास प्रिय,
मेरा मन रखने को
इतना
तुम कर देना.....
तुम हँस देना ।
गोधूलि की
आहट को सुन,
जब पक्षी
कलरव कर जायें,
नभ के आँगन में
छिटपुट से,
कुछ तारे भी जब
खिल जायें,
ऐसे में
स्मित हास लिये,
पलकों पर
रखकर प्यार प्रिय,
मेरा मन रखने को
इतना
तुम कर देना.....
तुम हँस देना.'

Thursday, February 3, 2011

ख्वाहिशे सब्ज़े-सफ़र......

आप सब जाने-अनजाने लोग जो अपनी बहुमूल्य टिप्पणी देते रहते हैं, उसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ.यह बहुत बड़ा सहयोग है आप सबों का..... जिससे बेहद ख़ुशी मिलती है......."

                                                    
"ख्वाहिशे सब्ज़े-सफ़र (जिंदगी की खुशहाली)
ना खत्म हो,
ऐ ख़ुदा
तेरी दुआओं से रहें
महफूज़ (सुरक्षित) हम, 
रंगे - मौसम - रौनकों से
सामना होता रहे,
ऐ ख़ुदा
तेरी दुआओं का
मुनव्वर (प्रकाश),
साथ हो."