Friday, September 30, 2011

वहां चलती होगी तुम्हारे आस-पास..........

जयपुर के 'गेस्ट-हाउस' से लिखी हुई........एक पुरानी चिठ्ठी मिली तो मन हुआ पोस्ट करने का ............

वहां चलती होगी तुम्हारे 
आस-पास......... 
आश्विनी  बताश
और 
हवा मिलती नहीं
यहाँ,
लेने को   सांस.
खिड़कियों की जाली से 
छनकर आती है,
ताजगी  
बाहर ही,
रह जाती है, 
शीशा   खुलते ही 
मच्छरों का त्रास  
और
हवा मिलती नहीं
यहाँ,
लेने को  सांस. 
तुम्हें  दिखता होगा  
सारा  आकाश .......
और 
यहाँ,
खिड़कियों  में
बंधा हुआ
आस-पास,
दीवारों  पर लटकते हुए 
'फोटो -फ्रेम'  जैसा, 
होता है 
प्रकृति का एहसास,
तुम घिरी  होगी 
ठीक  जाड़ों के पहलेवाली,
हल्की,सुनहरी 
धूप से, 
नपी-तुली 
सूरज की किरणें यहाँ,
समय के 
अनुरूप से,
देखती  होगी तुम 
गोधूली  की बेला,  
छितिज का हर  पार,
यहाँ, 
सबके बीच में 
आ  जाता  है दीवार,
कट  जाता है
नीम  का पेड़,
कटती  है
चिड़ियों  की कतार, 
यहाँ,
सबके बीच में 
आ जाती है दीवार,
वहां चांदनी  रातों  को  
तुम,
हाथों  से
छू लेती  हो .....
यहाँ, 
कभी  आ जाता  है,
पल - भर
खिड़की  पर चाँद
और सोचती  हूँ.......
वहां चलती होगी 
तुम्हारे 
आस -पास ........
अश्विनी  बताश 
और 
हवा मिलती नहीं 
यहाँ,
लेने को  सांस.     

Saturday, September 24, 2011

चलो आज हम अपने ऊपर.........

चलो आज हम
अपने ऊपर,
एक नया असमान
बनायें,
सपनों की पगडण्डी पर
हम,
फूलों का मेहराब
सजाएँ.
वारिधि की उत्तेजित
लहरों से,
कल्लोलिनी वातों में ,
अंतहीन 
मेघाछन्न नभ की,
चंद रुपहली
रातों में,
धवल ताल में 
कमल खिलें 
और 
नवल स्वरों के 
गुंजन में,
धूप खड़ी पनघट से 
 झाँके ,
नीले नभ के
दर्पण में,
रंगों की बारिश में
भींगी
तितली पंख सुखाती हो,
विविध पुलिन-पंखुड़ियों से
जाकर बातें
कर आती हो,
झरने का मीठा पानी
पीने बादल,
नीचे आयें,
पके फलों से
झुके पेड़ पर
तोता -मैना मंडराएं ,
सघन वनों की छाया में
छिट-पुट किरणें 
रहती हों,
माटी के टीलों पर 
पैरों की छापें ,
पड़ती हों,
जहाँ धरती से आकाश मिले 
उस दूरी तक हम 
हो लें ,
मृदुल कल्पना के 
पंखों से,
आसमान  को छू लें.  

Wednesday, September 14, 2011

तमाम परेशानियों को........

तमाम परेशानियों को
करके नज़र-अंदाज़,
आज बस
तुम्हें ही,
याद करने को
जी चाहा है.......
तेरी यादों में
यूँ खोयी....
कब शुरू किया,
कब ख़त्म,
मुझे
कुछ याद नहीं ........