Tuesday, August 28, 2012

फूलों से कहती हूँ.....


तुम्हारी ऊँची-ऊँची 
आसमानी 
उड़ानों के नीचे,
छोटी-छोटी 
मेरी 
रोज़मर्रा कि खुशियाँ 
कुचल जातीं हैं......
उन कुचली हुई 
खुशियों को 
जोड़-जोड़कर,
मिला-मिलIकर,
तुम्हारे 
लम्बे-लम्बे 
प्रवास में,
जब,दिन का कोई 
अंत 
नहीं दीखता है,
मैं 
फूलों से कहती हूँ.....
तू क्यों खिलता है?

22 comments:

  1. मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ...

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  2. छोटी लेकिन सुंदर कविता... मिला-मिलाकर में मिलाकार हो गया है। कृपया ठीक कर लें..

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  3. दिल को छूती हुई पंक्तियाँ ... दिल को सीधे से लिख दिया ...

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  4. एक सुन्दर कविता..!

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  5. गहन सोच के साथ सुन्दर प्रस्तुति..

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  6. सुविधाभोगी व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य।

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  7. Kayi kaliyan phool nahee ban pati....kaliyon ke haath me kahan hai phool ban jana ya nahee?

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  8. आज खड़े होकर तालियाँ बजाने को जी चाहता है.. बहुत ही खूबसूरत कविता.. बहुत सरल शब्दों में बहुत ही गहरी बात!!

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  9. अच्छी पर छोटी कविता |
    आशा

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  10. परेशान हूँ इस स्पैम से.. निकालिए मेरा कमेन्ट..प्लीज़!!

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  11. मैं
    फूलों से कहती हूँ.....
    तू क्यों खिलता है?
    gazab ki shikayat

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  12. कल 31/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  13. दिल को स्पर्स करती भाव पूर्ण रचना,,,,,

    MY RECENT POST ...: जख्म,,,

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  14. sab apna apna kaam kar rahe hain to fool kyu n kare.....? kya aap apni khushiyon ko kuchalne se bacha paati hai.....? agar haan to aap bhi riverse counting kijiye.

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  15. बढ़िया अभिव्यक्ति...
    शुभकामनायें आपको !

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  16. ye dil tum bin kahin lagata nahin ...ham kya karen ....
    kuchh nahin to phool se hii shikayat karen ...
    koi to sune ...
    sundar bhaav ...

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