Sunday, October 14, 2012

कभी बाल सूर्य देखा है क्या ?

बड़े-बड़े शहरों में 'सूर्योदय' का मनोरम  दृश्य दुर्लभ हो गया है.ऊँची-ऊँची इमारतों के पीछे  सूर्य के बाल  रूप की छठा छिप जाती है.इसी भाव पर ये कविता है ........

कभी बाल सूर्य
देखा है क्या ?
हर रोज़ क्षितिज  के
कोने में,
पौ फटते ही,
एक लाल-लाल
गोला-गोला,
चपटा-चपटा
थाली जैसा,
देखा है क्या?
कभी बाल लाल की
स्निग्ध प्रभा
क्रीड़ा-कौतुक,
कभी बाल लाल की
रत्न-जटित
जो स्वर्ण मुकुट,
कभी बाल लाल
शीतल प्रकाश का
रंग-जाल,
कभी बाल लाल के
मस्तक का
हँसता गुलाल,
कभी बाल लाल का
सम्मोहन
जादू विशाल,
कभी बाल लाल की
रूप छठा से
मुदित भाल,
कभी बाल लाल का
मेघ-माल,
कभी बाल लाल की
तेज़ चाल,
हर रोज़ क्षितिज के    
कोने में,
पौ फटते ही,
एक लाल-लाल
गोला-गोला,
चपटा-चपटा
थाली जैसा,
देखा है क्या?
कभी बाल सूर्य
देखा है क्या ?







22 comments:

  1. बहुत खुबसूरत भाव संजोए है..बधाई..

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  2. सूर्योदय का विहंगम दृश्य...खींच दिया...छोटे शहर में भी अब लोग देर से उठते हैं...आपकी कविता के माध्यम से बाल सूर्य के दर्शन हो गए...

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  3. देखा है...हर रोज देखा करते हैं...और चाहा करते हैं उसे...
    :-)

    सादर
    अनु

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  4. देखा है, उसे इस मोहक बाल स्वरुप में ही देखना मन को भाता है...बहुत सुन्दर रचना

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. बाल सूरज के विभिन्न स्वरूपों का सुन्दर वर्णन

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  7. वाह....
    अद्भुत चित्रण...!!

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  8. कभी बाल सूर्य
    देखा है क्या ?
    हर रोज़ छितिज के।।।।।।।।क्षितिज ...........
    कोने में,
    पौ फटते ही,
    एक लाल-लाल
    गोला-गोला,..................गोल गोल .......
    चपटा-चपटा
    थाली जैसा,
    देखा है क्या?
    कभी बाल लाल की
    स्निग्ध प्रभा
    क्रिड़ा-कौतुक,............क्रीड़ा ............
    कभी बाल लाल की
    रत्न-जटित
    जो स्वर्ण मुकुट,
    कभी बाल लाल
    शीतल प्रकाश का
    रंग-जाल,
    कभी बाल लाल के
    मस्तक का
    हँसता गुलाल,
    कभी बाल लाल का
    सम्मोहन
    जादू विशाल,
    कभी बाल लाल की
    रूप छठा से
    मुदित भाल,
    कभी बाल लाल का
    मेघ-माल,
    कभी बाल लाल की
    तेज़ चाल,
    हर रोज़ छितिज के
    कोने में,
    पौ फटते ही,
    एक लाल-लाल
    गोला-गोला,
    चपटा-चपटा
    थाली जैसा,
    देखा है क्या?
    कभी बाल सूर्य
    देखा है क्या ?बाल सूर्य का सहज मानवीकरण इन खूबसूरत रचना में किया गया है कुछ रूपक देखते ही बनते हैं -कभी बाल लाल के मस्तक का हंसता गुलाल ....मुदित भाल ,.....मेघ माल ....

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  9. बहुत पहले देखा था, शायद हम प्रकृति के इस पहलुओं को अनदेखा करने लगे हैं...बहुत सुन्दर रचना !

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  10. लाजवाब प्रस्तुति

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  11. सूर्योदय का विहंगम दृश्य वापस याद आ गया अब तो सुबह की भागदौड़ मे इसे भूल ही गयी थी.
    बहुत सुन्दर रचना !

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  12. सूर्योदय का अद्भुत वर्णन ... करती उत्तम अभिव्‍यक्ति

    सादर

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  13. आपने तो दर्शन करवा ही दिया

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  14. सूर्योदय की विहंगम प्रस्तुति कर दर्शन करवा दिए,,,,
    लाजबाब रचना आभार,,,,,,

    RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी

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  15. अति सुन्दर मृदुला जी... आपने तो शब्दों से ही बाल रवि का सुन्दर चित्र प्रस्तुत कर दिया.

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  16. गोला-गोला,
    चपटा-चपटा
    थाली जैसा,
    देखा है क्या?
    कभी बाल सूर्य
    देखा है क्या ?
    ..बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति!

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  17. शहरों में सूर्योदय देखना तो सच में अब दुर्लभ होता जा रहा है. बहुत अच्छी रचना, बधाई.

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  18. महानगर में तो यह भी नहीं पता होगा कि यह बाल-लाल या अंजनी पुत्र का मीठा फल होता क्या है..
    आपकी कविता का प्रवाह नदी की तरह है और दिल खुश हो गया एक शिशुगीत की तरह इसे पढते हुए!! आभार आपका, इतनी सुन्दर कविता के लिए!!

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  19. रूप छठा से
    मुदित भाल,..........शहरों में सूर्योदय देखना तो सच में अब दुर्लभ होता जा रहा है..........
    स:परिवार नन्रात्रि की ढेरों शुभकामनाएं स्वीकार कीजियेगा.......

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