Wednesday, February 29, 2012

तुम सृजन की छाँव में.......

तुम सृजन की
छाँव में,
मधु-रागिनी सी
आ गयी,
तुम सरल किरणें लिए
मेरी
यामिनी में
आ गयी.
कमनीय काया,कनक
कुंदन बदन,
कोमल लता,
चंपा-कली अधरें,
भ्रमर
काली लटों से
झांकता.
दो नयन
स्वप्निल कमल,
पलकों में जागी
पंखुड़ी,
तुम सुबह की
ज्योत्स्ना
मुस्कान में मोती जड़ी.
सुर्ख जोड़ा,पांव में
पायल,
महावर की ये
लाली,
झुक के पलकों  ने
भरी
मदिरा से है.....
आँखों की प्याली.
हे रूपसि,
बिंदी में
माणिक की छठा
है डोलती,
तुम सृजन का
स्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती .



Friday, February 24, 2012

.......कि बगल की कुर्सी पर

कैसी है ये यात्रा,
कैसा है ये सफ़र,
इधर
और उधर,
सिर्फ़
नए,अपरिचित
चेहरे.
कहीं बच्चों की
कतार,
कहीं सरदारजी
सपरिवार,
कोई खा रहा
'चौकलेट'
कोई पी रहा
सिगार,
किसे दिखाऊँ
उस औरत का
जूड़ा,
किसे दिखाऊँ 
उन महाशय की
मूंछें,
किससे कहूँ
'एयर-बैग' उतारो,
किससे कहूं 
'सीट-बेल्ट' बाँधो.
किसे पिलाऊँ 
अपने हिस्से का
'कोल्ड-ड्रिंक',
किसके कन्धों पर
सोऊँ
उठंगकर.......कि
बगल की कुर्सी पर
न तुम,न तुम
और
न तुम.






Sunday, February 12, 2012

हर रोज़ नए-नए तरक़ीब से.......

हर रोज़ 
नए-नए तरक़ीब से ,
मन को 
उठाने ,बैठाने,बहलाने के,
पचीसों वज़ह,
ढूंढकर लाती हूँ......और 
कभी बेवज़ह,
वज़ह बनाकर,
ख़ुद को 
समझाकर,
खड़ी हो जाती हूँ.
समय के साथ 
खिट-पिट 
चलती है,
घड़ी
लगातार
मुश्तैद रहती है,
दस बज गए-
'नाश्ता कर लो',
बारह बज गए-
'चाय पी लो',
ये बज गया-
'वो कर लो ',
वो बज गया -
'ये कर लो '.
नियंत्रण 
कड़ा रहता है,
मैं सोचती हूँ ........
अच्छा रहता है,
एक 
पहरा रहता है.
रोक-टोक 
बनी रहती है ,
नोक -झोंक 
बनी रहती है
वरना......
मनमानी की 
ज़मीन पर,
अहंकार की फ़सल
तैयार 
होने में,
देर कहाँ लगती है?




Wednesday, February 8, 2012

सच कहूं तुम्हें......

 पिछली 'पोस्ट' का ज़बाब तो आना ही था .........सो आ गया ,लीजिये आप भी पढ़ लीजिये.........

तुमने जो भेजी 
मुस्कानें,
होठों पर धर ली........मैनें,
किरणों के रस से 
सपनों की ,
झोली है भर ली ......मैनें .
कोमल ,धवल ,चपल,
सौरभ,
संगीत ,पुलक  रख 
मन में.....
आँखों ,गालों,
बालों  को,
दे दी सौगातें........
मैंने.
अनुपम उपहार 
तुम्हारा 
यह,
अनमोल बहुत 
प्यारा है,
सच कहूं तुम्हें......
यह तोहफ़ा तो 
हर तोहफ़े से 
न्यारा है.  

Wednesday, February 1, 2012

जो मिल जाये,तो कह देना........

मैंने तेरे 
होठों की ख़ातिर 
मुस्कानें,
भेजी थी..........जो 
मिल जाये,तो 
कह देना.        
मैं लाज 
तुम्हारी आँखों को,
लाली गुलाब की 
गालों को
और धूप-छांव से 
बुनी हुई,
चोटी भेजी थी 
बालों को.
मैं हरित तृणों की 
कोमलता,
शबनम की स्वच्छ 
धवलता,
कुछ भ्रमर दलों के 
गीत मधुर,
तितली की सरल 
चपलता,
फिर किसलय का 
भीना सुवास,
नवजात कुसुम की 
पुलक,हास
और 
स्वप्न-सुरा के 
रंगों की ख़ातिर 
कुछ किरणें 
भेजी थी........जो 
मिल जाये,तो 
कह देना,
मैंने तेरे 
होठों की ख़ातिर 
मुस्कानें,
भेजी थी.........जो 
मिल जाये,तो 
कह देना.